इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महिना होता है रमजान का महापवित्र महीना

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इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महिना होता है रमजान का महापवित्र महीना


विप्र.
नवादा(रवीन्द्र नाथ भैया) 

-नेकी की राह पर चलने का अल्लाह कराते हैं मार्ग दर्शन-रमजान के पहले रोजा का हुआ आगाज

रमजान आते ही इंटरनेट से लेकर व्हाट्सप्प पर खजूर, खीर, शरबत और फलों की फोटो शेयर होने लगी है, जैसे मानों ये महीना भूखे रहने का नहीं बल्कि खाने पीने का हो?लेकिन असल में रमजान सिर्फ भूखे रहने का नाम नहीं है, बल्कि खुद पर नियंत्रण करना, बुराई को हराना, गरीबों के दर्द को महसूस करना, उनकी मदद करना और खुद को एक अच्छा इंसान बनाने का प्रक्रिया है। 

ना बुरा देखो, ना बुरा सुनो और ना बुरा बोलो कुछ वैसा ही रमजान का महीना होता है। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रमजान नौवां महीना है। रमजान में बहुत से लोगों को यह पता नहीं होता है कि क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते हैं। 

इस्लाम की पांच मुख्य बातें हैं। कलमा (अल्लाह को एक मानना), नमाज, जकात (दान), रोजा और हज (मक्का की यात्रा)। रमजान के महीने में ही कुरान शरीफ दुनिया में उतरा था, इसलिए भी ये महीना बहुत खास और इबादत का महीना माना जाता है। 

सबसे पहले बात करते हैं कि रमजान में क्या नहीं कर सकते हैं:- रोजा में ये चीजें बिलकुल ना करें। रोजे की सबसे पहली शर्त है भूखे रहना, मतलब सुबह जब सबसे पहली अजान होती है उस वक्त से लेकर शाम में सूरज डूबने तक कुछ भी नहीं खाना है ना ही पीना। कुछ नहीं मतलब कुछ भी नहीं। सिगरेट, जूस, चाय, पानी कुछ भी नहीं ग्रहण करना है। 

इस्लाम में शराब हराम है, मतलब शराब पीना गुनाह माना जाता है, इसलिए रोजे के दौरान भी शराब सेवन की एकदम मनाही है। दूसरों की बुराई या झूठ बिलकुल भी ना बोलें, लड़ाई, झगड़ा, गाली देना इन सब चीजों से रोजा टूट जाता है। शारीरिक संबंध बनाना भी मना है। किसी भी औरत या मर्द को गलत नजर से देखना भी मना है। जानबूझ कर उल्टी करने से भी रोजा टूट जाता है। 

रोजे में इन चीजों का रखें खयाल और सवाब से हो जाएं मालामाल :- रमजान का महीना इबादत का महीना है, मतलब इस महीने ज्यादा से ज्यादा ऐसा काम किया जाये जिससे अल्लाह खुश हो और अल्लाह को खुश करने के लिए सबसे जरूरी है उसके बताए रास्ते पर चलना। ज्यादा से ज्यादा अल्लाह को याद करें, नमाज और कुरान पढ़ें, क्योंकि इस महीने में जो इबादत की जाती है, आम दिनों के मुकाबले ज्यादा बरकत देती है। एक दूसरे की मदद करें, जकात और फितरा दें, मतलब गरीब को ज्यादा से ज्यादा दान करें। रोजेदारों को इफ्तार कराएं, मिस्वाक (दातुन) करना, सेहरी (सुबह के वक्त का खाना) का इंतजाम करें, मतलब सुबह सूरज निकलने से पहले कुछ खाएं और दूसरों को भी खिलाएं। रोजा इस्लाम की पांच अहम बातों में से एक है, जो सभी बालिग पर वाजिब है। वाजिब मतलब करना ही होगा, नहीं करने पर गुनाह के भागीदार होंगें। 

बीमार के लिए माफी:- अगर कोई बीमार है, जिसमें डॉक्टर ने भूखे रहने से मना किया है या फिर वो कुछ ऐसी दवा खा रहा है जिसे छोड़ने से उसकी बीमारी बढ़ जाएगी, तो वो रोजा छोड़ सकता है। 

यात्रा के दौरान छोड़ सकते हैं रोजा:- कोई लंबी यात्रा पर है और अगर रोजा रखने में परेशानी आ सकती है तो रोजा छोड़ा जा सकता है, लेकिन छोड़े हुए रोजे का बदले बाद में रोजा रख कर पूरा करना होगा। 

गर्भवती औरतें को छूट:- गर्भवती औरतें या नई-नई मां बनने वाली महिलाएं, जो बच्चे को दूध पिलाती हैं, वह भी रोजा नहीं रख सकतीं हैं। बुजुर्ग और छोटे बच्चों को भी रोजा रखने में छूट दी गई है। गलती से कुछ खा लेने से नहीं टूटता है रोजा:-

कई बार इंसान ये भूल जाता है कि वो रोजा में है और ऐसे में गलती से कुछ खा लेता है, तो इस हालत में रोजा नहीं टूटेगा, लेकिन इसके लिए शर्त है कि अगर खाने के बीच में ही आपको याद आ जाए कि आप रोजा में हैं तो खाना तुरंत छोड़ देना होगा।

नहाने के दौरान पानी का नाक या मुंह में जाना:- कई बार नहाने के वक्त पानी मूंह या नाक में चला जाता है तो ऐसे मौके पर रोजा टूटता नहीं है, लेकिन जानबूझ कर पानी पी लेने से रोजा टूट जाएगा। अपना थूक निगलने से रोजा नहीं टूटता है तथा नाखुन काटने या बाल दाढ़ी बनाने से भी रोजा नहीं टूटता है।

रमजान महीने का पहला रोजा का आगाज हो चुका है। ऐसे में सभी के लिए रोजा आवश्यक है। चिकित्सा के लिहाज से भी इसे आवश्यक माना गया है। क्योंकि पूरे शरीर के खून को रोजा साफ कर देता है।

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