एम्स के फॉरेंसिक रिपोर्ट से खुला कारा अधीक्षक को फंसाने का राज

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एम्स के फॉरेंसिक रिपोर्ट से खुला कारा अधीक्षक को फंसाने का राज


विप्र.
नवादा से रवीन्द्र नाथ भैया की रिपोर्ट 

- नपेंगे गलत जांच रिपोर्ट देने वाले पदाधिकारी 

नवादा मंडल कारा में कैदी गुड्डू कुमार 5 सितम्बर 2021 की मौत मामले में मानवाधिकार आयोग द्वारा जांच के लिए भेजे गए पटना एम्स फॉरेंसिक की रिपोर्ट ने जांचकर्ता के रिपोर्ट को भ्रामक बताते हुए नवादा के तत्कालीन एसडीपीओ उपेन्द्र प्रसाद तथा एसडीओ रहे उमेश कुमार भारती को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जो परिस्थितियां बनी है इससे साफ जाहिर है कि जात-पात की भावना से प्रेरित होकर कारा अधीक्षक अभिषेक कुमार पांडेय को गलत तरीके से साजिश के तहत फसाया गया। 

फोरेंसिक लैब ने कहा है कि मृतक कैदी के शरीर पर जख्म के निशान 5 दिन पुराने हैं, जबकि जेल पहुंचने के 2 दिन बाद उसकी मौत हो जाती है। इससे साफ जाहिर है कि जेल आने के पूर्व ही कैदी की पिटाई हुई थी, जिसे रजौली के तत्कालीन थानाध्यक्ष दरबारी चौधरी ने छिपाया। 

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-54 के अनुसार जख्मी कैदी को मेडिकल रिपोर्ट कराकर ही जेल भेजना है, लेकिन चौधरी ने इन तथ्यों को छुपाते हुए बिना मेडिकल कराये ही जेल भेज दिया। जेल में चिकित्सक नहीं रहने के कारण कैदी के जख्म की जांच नहीं हो सकी थी, जिससे जाहिर है कि जेल के बाहर पिटाई से कैदी की मौत हुई। 

बिहार कारा सेवा संघ के अध्यक्ष ने जांच पदाधिकारी के विरुद्ध मोर्चा खोलते हुए बिहार के गृह सचिव, जेलर आईजी को प्रतिरोध पत्र लिखकर बेवजह निलंबित किए गए उनके पदाधिकारी अभिषेक कुमार पांडेय को शीघ्र निलंबन से मुक्त कर गलत जांच रिपोर्ट करने वाले पदाधिकारी के विरुद्ध मुकदमा चलाने की मांग की है।न्यायिक दंडाधिकारी की जांच रिपोर्ट को भी फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट ने कटघरे में खड़ा करते हुए उन्हें इस तरह के जांच रिपोर्ट के लिए अयोग्य बताया है।विभागीय जांच अधिकारी मगध प्रमंडल के कमिश्नर की रिपोर्ट ने कारा अधीक्षक श्री पांडेय को हत्या के मामले में निर्दाेष करार देते हुए लापरवाही के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार बताया है, जिससे नवादा के एसडीओ रहे उमेश कुमार भारती तथा नवादा के एसडीपीओ रहे उपेन्द्र प्रसाद की कारा अधीक्षक श्री पांडेय को हत्या आरोपी बताने जैसी जांच रिपोर्ट की धज्जियां उड़ गई। 

प्रमंडलीय आयुक्त की जांच में नवादा के जांच पदाधिकारी की रिपोर्ट को एक तरह से फर्जी तथा मनगढ़ंत बताया। आयुक्त की रिपोर्ट में तो न्यायिक जांच पदाधिकारी की रिपोर्ट को भी सीमा से बढ़कर मनगढ़ंत रिपोर्ट पेश करने की बात कही गई, जिसे आरोपी तत्कालीन कारा अधीक्षक अभिषेक कुमार पांडेय ने पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दे चुके हैं।जेलर उमाशंकर सिंह ने न्यायिक जांच पदाधिकारी पर एक कैदी को विशेष सुविधा देने की सिफारिश नहीं मानने पर न्यायिक जांच पदाधिकारी द्वारा मनगढ़ंत रिपोर्ट पेश कर परेशान करने की बात कही गई है।जांच में न्यायिक जांच की भी धज्जियां उड़ चुकी है।कारा उप महानिरीक्षक तथा स्वास्थ्य विभाग के उप निदेशक ने भी जांच में कारा अधीक्षक अभिषेक कुमार पांडेय को निर्दाेष बताया है। 

जेल में मौत के बाद नवादा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश तथा मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने भी औचक निरीक्षण कर कैदियों का बयान लिया था, जिसमें भी कारा अधीक्षक को निर्दाेष बताया गया था। जांच में यह बात भी सामने आई है कि गिरफ्तार किए जाने के बाद ग्रामीणों ने मॉब लिंचिंग में उसकी पिटाई की थी। उसके बाद रजौली के थानाध्यक्ष दरबारी चौधरी तथा दरोगा निरंजन सिंह ने भी जमकर पिटाई किया था, जिससे कैदी को गंभीर चोट आई थी। 

कैदी ने अपने वार्ड में इस बात का खुलासा साथी कैदियों के बीच की थी। इस प्रकार संपूर्ण जांच रिपोर्ट देखने से स्पष्ट है कि नवादा के एसडीओ तथा एसडीपीओ भावनाओं से ग्रसित होकर तत्कालीन कारा अधीक्षक अभिषेक कुमार पांडेय को हत्या के मामले में फंसाने की साजिश की, जिसे प्रमंडलीय आयुक्त ने पूर्णतः गलत करार दिया। प्रमडलीय आयुक्त ने अपनी जांच में यह माना है कि संस्थान के मुखिया होने के कारण इलाज में लापरवाही के लिए कारा अधीक्षक अभिषेक पांडेय को आंशिक रूप से दोषी माना जा सकता है।उन्होंने कारा अधीक्षक की सीबीआई तथा सीआईडी की जांच की मांग को भी सरकार के पास अनुशंसित करते हुए उचित निर्णय की बात कही है। 

तत्कालीन कारा अधीक्षक के अंगरक्षक को जेल में घुसकर पिटाई की बात कही गई थी, लेकिन सच्चाई थी कि उस दिन अंगरक्षक छुट्टी पर था। छुट्टी के मामला भी प्रमाणित हो चुका है, जिससे उसके द्वारा पिटाई की बात भी झूठी साबित हुई। 

इस तरह से माना जाए तो जांच पदाधिकारियों ने श्री पांडेय को हत्या के मामले में फंसाने के लिए कूट रचना की है,जिसके विरुद्ध श्री पांडेय पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।मगध प्रमंडल के आयुक्त की जांच रिपोर्ट ने जांच पदाधिकारियों के साथ ही न्यायिक जांच की धज्जियां उड़ाकर रख दी है।प्रमंडलीय आयुक्त ने कहा है कि कारा अधीक्षक द्वारा कैदी की हत्या का कोई कारण नजर नहीं आता। जांच पदाधिकारी ने शंका के आधार पर आरोप लगा दिया था, लेकिन हत्या के मामले में संलिप्तता का किसी प्रकार का साक्ष्य नहीं जुटा पाए।प्रमंडलीय आयुक्त की रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई है, जिससे जांच करने वाले पदाधिकारियों में हड़कंप मचा है।बिहार कारा सेवा संघ ने कहा है कि बेवजह हमारे निर्दाेष पदाधिकारी को 2 वर्षों से निलंबित रखा गया है, जो बिल्कुल गैर कानूनी है। कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन किया जाएगा।

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