कुटीर उद्योग बन चुका महुआ शराब का अवैध धंधा

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कुटीर उद्योग बन चुका महुआ शराब का अवैध धंधा



विप्र.
विकाश सोलंकी की ग्राउंड रिपोर्ट रजौली 

-छोटी बड़ी करीब 100 अवैध शराब भट्टीयां हर रोज 10000 लीटर बनाती महुआ शराब

रजौली (नवादा) बिहार में शराबबंदी के बावजूद भी रजौली थाना क्षेत्र में नहीं थम रहा है।अवैध महुआ शराब का धंधा फुलवरिया डैम में पानी की मात्रा कम और अधिक होती रहती है। लेकिन डैम के किनारे अवस्थित फुलवरिया में शराब की धारा कभी कम नहीं होती। नक्सल प्रभावित और पठारी इलाका होने के कारण सुरक्षित स्थान बना हुआ है। फुलवरिया डैम में सालों भर शराब की धारा बहती है।छोटे बड़े करीब 100 अवैध शराब की भट्ठियां हैं। इससे हर रोज करीब 10,000 लीटर महुआ शराब का निर्माण होता है। एक शराब धंधेबाज नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि एक भट्ठी से दिन भर में 100 से 200 लीटर शराब की चुलाई होती है।इस हिसाब से जोड़े तो एक माह में 1.5 लाख लीटर जबकि साल भर में 20,00000 लीटर महुआ शराब बनती है।

आस-पास के गांव में फैला जाल

फुलवरिया डैम अकेला ऐसा गांव नहीं है।दर्जनों गांव में अवैध शराब का धंधा कारोबार का रुप ले चुका है।राधेविगहा,सतगीर,मोहकामा,जॉब कला, खुशियालीभीता, बलिया,जमुनदाहा, भानेखाप, चोरडीहा, डेलवा, पिछली, खिड़कियाकला, चटकरी, फगुनी, सेठवा,जरलाही आदि कई गांवों में अवैध शराब बनाने का धंधा जोरों पर चलता है।

सब कुछ जुगाड़ टेक्नोलॉजी पर 

देशी शराब बनाने का तरीका भी देशी हैं।महुआ को पांच से सात दिनों तक पानी में फुलाया जाता है।फिर एक बड़े तसला में 15 किलोग्राम महुआ छोवा (रावा) और उसमें नौसादर की 10 गोलियां डाली जाती है।चूल्हे पर बड़ा तसला, उसके ऊपर एक उल्टा तसला रखा जाता है।उल्टा तसला से पानी निकलने का पाइप लगा होता है।उल्टा तसला के ऊपर से पानी गिरने की व्यवस्था की जाती है। नीचे से बड़ा तो तसला को गर्म किया जाता है।लिहाजा, बड़ा तसला में एकत्रित होता है।यह पानी के रूप में पाईप से निकलता है। वास्प को  पानी बनाने के लिए उल्टा तसला के ऊपर से पानी गिराया जाता है। एक तसला में करीब 30 लीटर शराब बन कर निकलती है। दो गुना पानी मिलाने के बाद  शराब पीने के लायक होती है।नहीं तो शरीर के लिए नुकसान देह भी हो जाती है।

महुआ शराब का गंदा है पर धंधा अच्छा

बड़े पैमाने पर झारखंड राज्य के कोडरमा जिला के जंगली क्षेत्र से बड़े पैमाने पर महुआ का आयात किया जाता है।छोवा और नौसादर गोली की काफी खपत है।बिक्री का नेटवर्क इतना मजबूत है कि एक निर्माणकर्ता होता है। दूसरा डिस्ट्रीब्यूटर और रिटेलर जो गांव गांव में आपूर्ति करता है।1 लीटर भाडा की कीमत 40 रुपया है। शराब धंधेबाज के मुताबिक करीब 200 लीटर शराब बनाने में 10,000 रुपया खर्च गिरता है। लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर और रिटेलर को 20,000 रुपया में उपलब्ध करता है। रिटेलर डिस्ट्रीब्यूटर 200 लीटर में 400 लीटर पानी मिलाकर 600 लीटर शराब बना देता है। लिहाजा, उस की आमदनी में तीन गुना इजाफा हो जाता है।मात्र ढूलाई करने वाले होकर को एक बार में 700 रुपया से 800 रुपया दिया जाता है।

नशा बढ़ाने के लिए मिलाते नौसादर की गोलियां 

नशा बढ़ाने के लिए नौसादर की गोलियां दी जाती है। यही नहीं दुधारू पशुओं को दिया जाने वाला इंजेक्शन ऑक्सी टोसिन काफी इस्तेमाल किया जाता है।महुआ गलाने आने के लिए यूरिया खाद का भी इस्तेमाल किया जाता है।इन सब की मात्रा अधिक होने से महुआ शराब मौत की वजह भी बन जाती है।

किस तरह से पहुंचाया जाता महुआ शराब 

शराब धंधेबाज बताते हैं कि महुआ शराब को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के पहले दो बाइक आगे आगे रहते हैं आगे जाकर लोकेशन देते हैं, तभी पीछे से शराब लदा वाहन आगे निकलते हैं,लोकेशन देने की ऐवज में 300 रुपया प्रति आदमी को दिया जाता है और इससे शराब असानी तरीका से पहुंच जाता है।





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