विप्र.नवादा से रवीन्द्र नाथ भैया की रिपोर्ट
नवादा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि पर हर साल की तरह इस बार भी चित्रगुप्त पूजा और भैयादूज का पर्व धूमधाम से मनाया गया।एक तरफ कायस्थ समाज के लोगों ने चित्रगुप्त पूजा कर अपने आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की अराधना में जुटे रहे,दूसरी ओर बहनों ने अपने भाई की लम्बी उम्र की कामना के लिये भैयादूज का व्रत रख कर उनका तिलक किया।चित्रगुप्त पूजा को लेकर कई स्थानों पर प्रतिमाओं की स्थापना की गई, जिसमें कलम और दवात की पूजा कर अपनी परम्पराओं को कायस्थ परिवार के लोगों ने निभाया।
नगर के प्रसिद्ध शोभनाथ मंदिर परिसर में स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में कायस्थ समाज के लोगों ने पूजा अर्चना की।इस दिन कायस्थ परिवार के लोग लेखन का काम बंद रखा,जिसकी वजह से कई विभागों में काम काज प्रभावित रहा।
कलम के आराध्य महाराज चित्रगुप्त के समक्ष रखा जाता ब्यौरा
कलम के आराध्य महाराज चित्रगुप्त को खुश करने के लिए खास पूजा की जाती है।वैसे तो चित्रगुप्त पूजा कायस्थ परिवार लोग ही करते हैं, लेकिन इसे व्यापारी और कलम का इस्तेमाल करने वाले लोगों द्वारा भी किया जाता है। इस दौरान भगवान चित्रगुप्त के समक्ष आमदनी और खर्चों का पूरा ब्यौरा रखा जाता है, इसके बाद नए खातों की किताब पर श्री लिखकर काम की शुरुआत की जाती है।चित्रगुप्त पूजा को चित्रगुप्त जयंती या दवात पूजा भी कहते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार चित्रगुप्त पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाई जाती है। वहीं, अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक चित्रगुप्त पूजा दिवाली के दो दिन बाद यानी भैयादूज के दिन मनाई जाती है, इसके दो दिन बाद से छठ पर्व शुरू हो जाती है। दीपावली के बाद चित्रगुप्त पूजा को समाज के लोगों द्वारा उत्साह पूर्वक मनाया गया।
नगर के गढ़पर स्थित चित्रगुप्त मंदिर व शोभिया स्थित चित्रगुप्त मंदिर सहित कई स्थानों पर स्थापित मंदिरों में कायस्थ समाज के लोगों ने उत्साह पूर्वक अपने आराध्य देव भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने में जुटे रहे।
शहर से लेकर गांव तक भैयादूज की रही धूम
भैयादूज का त्योहार भाई-बहन के अपार प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर भोजन कराती हैं, इतना ही नहीं भाई-बहन इस दिन साथ बैठकर खाना खाते हैं।
दीपावली के दो दिन बाद आने वाले इस त्योहार को यम द्वितीया भी कहा जाता है।भैयादूज पर बहनों ने अपने भाईयों के लिये व्रत को करते हुए मृत्यु के देवता यम पूजा का विधान निभाया।दीपावली के दो दिन बाद मनाये जाने वाले इस व्रत को रक्षाबंधन की तरह किया जाता है।
शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक इस व्रत की श्रद्धा देखते बन रही थी। रक्षाबंधन के बाद भैया दूज दूसरा ऐसा त्योहार है जिसे भाई-बहन बेहद उत्साह के साथ मनाते हैं। एक तरफ रक्षाबंधन में भाई अपनी बहन को सदैव उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं,वहीं भाई दूज पर बहनों ने अपने भाई की लंबी उम्र की कामना के लिये इस व्रत को करती आ रही हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं,उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसी वजह से भैया दूज के दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है।
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