आशापुरी मंदिर में यहां नवरात्र में महिलाओं का प्रवेश हो जाता बंद,-तंत्र विधि से होती है पूजा

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आशापुरी मंदिर में यहां नवरात्र में महिलाओं का प्रवेश हो जाता बंद,-तंत्र विधि से होती है पूजा


विप्र.
बिहारशरीफ (नालंदा) 


 नालंदा से दीपक विश्वकर्मा की ग्राउंड रिपोर्ट 

नवरात्र में शक्ति की देवी मां दुर्गा की पूजा होती है। इस अवसर कन्या पूजन की जाती है। महिलाओं को देवी का स्वरूप माना जाता है। वहीं नालंदा जिले में एक ऐसा देवी मंदिर है, जहां नवरात्र में महिलाओं के प्रवेष पर रोक रहती है। इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि तांत्रिक विधि से पूजा होना। हम बात कर रहे हैं जिले के गिरियक प्रखंड के घोषरावां गांव स्थित मां आषापुरी मंदिर का। जहां नवरात्र के नौ दिनों तक महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। शायद यह दुनिया का इकलौता माता का मंदिर होगा जहां नवरात्र में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है। वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक महिलाएं नौ दिनों तक इस मंदिर परिसर और गर्भगृह में प्रवेश नहीं करती हैं। सिर्फ पुरुषों को मंदिर में पूजा करने की अनुमति रहती है। नवरात्र में नौ देवियों की पूजन होती है। नवमी को पूजन हवन होता है। परंपरा के अनुसार, नवरात्र के शरुआत के साथ ही रविवार से मंदिर में महिलाओं का प्रवेश बंद कर दिया गया है। 

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पावापुरी से पांच किलोमीटर दूर है यह मंदिर 


दरअसल मां आशापुरी मंदिर अति प्राचीन मंदिर है, जो पावापुरी मोड़ से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर घोषरावा गांव में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण मगध साम्राज्य में पाल काल में हुआ था। यहां पर मां दुर्गा की अष्टभुजा प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है कि मां आशापुरी मंदिर में तंत्र विद्या के अनुसार पूजा होती है और मां दुर्गे की अराधना की जाती है। यही वजह है कि यहां नवरात्र में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है। यहां तांत्रिक विधि से पूजा के कारण मंदिर के गर्भ गृह से लेकर परिसर तक महिलाओं का पूर्णत प्रवेश बंद रहता है। 

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मंदिर में पूजा करने पूरी होती हैं मन्नतें 


-इस प्राचीन मंदिर की खासियत है कि यहां जो लोग सच्चे भाव से मन्नत मांगते हैं, उसकी मनोकामना पूरी होती है। इसीलिए इस मंदिर का नाम आशापुरी रखा गया है। यहां बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, बिहार समेत कई राज्यों के लोग श्रद्धा भाव से दर्शन करने आते हैं।

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मंदिर परिसर में हैं बौद्धकालीन प्रतिमाएं 


ग्रामीणों के मुताबिक, इस परिसर में बौद्ध कालीन कई प्रतिमाएं मौजूद हैं। माना जाता है कि यहां बौद्ध धर्म के लोग पहले सिद्धि प्राप्त करते थे और जातक में महिलाओं का प्रवेश तंत्र सिद्धि में बाधक माना गया है। जिसे आज भी लोग मान रहे हैं।

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