गुरु भक्ति से ही सम्भव है जीवन का उद्धार:- स्वामी चतुरानंद महाराज

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गुरु भक्ति से ही सम्भव है जीवन का उद्धार:- स्वामी चतुरानंद महाराज


विप्र.
नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) 

संतमत के प्रणेता 108 श्री महर्षि मेंही जी महाराज के पट शिष्य मनिहारी आश्रम वासी आचार्य स्वामी चतुरानन्द जी महाराज ने कहा कि गुरु कृपा से ही जीवन का उद्धार संभव है। लेकिन यह साधना मानव शरीर के अलावा दूसरे जीवों से संभव नहीं हो सकता।मोक्ष की प्राप्ति केवल मानव ही दृढ़ ध्यानाभ्यास को अपनाकर कर सकता है। 

वे रविवार को जिले के उग्रवाद प्रभावित सिरदला में बीसीएम स्कूल के प्रांगण में आयोजित संतमत सत्संग के राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रवचन कर रहे थे ।

स्वामी चतुरानंद जी महाराज ने कहा कि जन्म -मरण के बंधन में बंधे रहना मानव ही नहीं बल्कि सभी जीवों के दुख का सबसे बड़ा कारण है ।जब तक जीव ईश्वर को पा नहीं लेगा तब तक वह दुखों से नहीं छूट सकता। उन्होंने ईश्वर स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा कि ईश्वर कण-कण में विद्यमान है इसीलिए संसार की सारी वस्तुएं ईश्वर में समाई हुई है ।

उन्होंने कहा कि ध्यान भजन नहीं करने वाला मानव सदा 84 लाख योनियों में भटक कर दुख पाता है। दुखों से छूटने का सबसे बड़ा माध्यम सच्चे संत सद्गुरु से युक्ति जानकर जतन करने से ही दुखों से छूटना संभव है। उन्होंने कहा कि 84 लाख योनियों के जीवों में केवल मानव को ही ईश्वर पाने का अवसर मिल सकता है ।

मानव खुद ही बाहर कहीं भी नहीं ,इसी शरीर में ध्यानाभ्यास कर ईश्वर को पा सकता है ।मानव शरीर के आत्म तत्व ही ईश्वर तत्व है ।जो ध्यान -भजन के माध्यम से कड़ी साधना की सफलता के बल ईश्वर में मिल जाते हैं ।ऐसा होने से ही इंसान दुखों से छूट जाता है।

उन्होंने कहा कि जन्म मरण सब दुख दूजा है नहीं जग में कोई ,इनके निवारण के लिए गुरु भक्ति करनी चाहिए ।उन्होंने कहा कि सच्चे संत सद्गुरु ही ईश्वर तक पहुंचने के रास्ते बताते हैं ।भजन भेद के माध्यम से मनुष्य गुरु के रास्ते पर चलकर ईश्वर को पा सकता है। जब कोई भी मानव ईश्वर को पा लेगा ,तो निश्चित तौर पर सदा - सदा के लिए वह दुखों से छूट जाएगा ।लेकिन जब तक वह दुनिया की माया में भटकता रहेगा, सदा दुखों को पाता रहेगा ।

उन्होंने कहा कि संसार की बाहरी तत्व केवल माया है ।अगर सत्य है तो केवल ईश्वर ही है।वही सत्य का स्वरूप हर इंसान का आत्म तत्व है।

उन्होंने कहा कि जीवन में खाने -पीने के लिए आत्मनिर्भर बनकर कुछ कमाई करनी चाहिए ।अधिकांश समय ईश्वर भक्ति में लगानी चाहिए ।तभी आप दुखों से छूट सकते हैं ।उन्होंने कहा कि अज्ञानता वश इंसान बाहर में भटकता रहता है। जबकि बाहर माया के आडंबर में सदा दुख ही दुख है ।जब तक वह गुरु से ज्ञान लेकर अंदर चलने की क्रिया नहीं जानकर जतन करेगा ,तब तक वह ईश्वर स्वरूप को नहीं पा सकता ।जब इंसान साधना के बल पर ईश्वर स्वरूप को पा लेगा ,तो समझिए को ईश्वर ही हो गया ।जब इंसान जन्म - मरण के बंधन से छूट जाएगा तो सदा सदा के लिए दुखों से छूट जाएगा । 

उन्होंने कहा कि ईश्वर आत्मगम्य है ,इंद्रिय गम्य नहीं । इसलिए ईश्वर को जानने का यंत्र इंद्रियां नहीं, बल्कि आत्मा है ।ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता गुरु ही बता सकते हैं । जिसे पाकर सदा सर्वदा के लिए दुःखों से छूट जाइये।

इस अवसर पर संजय दत्त, सचदेव मंडल सहित एक दर्जन सत्संगी व्यवस्था बनाने में जुटे हुए थे।

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