श्रीमद् भागवत कथा,मानव जीवन का आचार संहिता, व्यवहार संहिता और भव पार संहिता है:-प्रभंजनानंद जी

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श्रीमद् भागवत कथा,मानव जीवन का आचार संहिता, व्यवहार संहिता और भव पार संहिता है:-प्रभंजनानंद जी


विप्र.
नवादा से रवीन्द्र नाथ भैया की रिपोर्ट 

नवादा श्रीमद् भागवत कथा मानव जीवन का आचार संहिता व्यवहार संहिता और भव पार संहिता है। भागवत में जो आस्तिकता, धार्मिकता, व्यवहारिकता, प्रभु भक्ति उदात एवं दिव्य भावनाओं और उच्च नैतिक आदर्श का वर्णन मिलता है, वह अन्यत्र कहीं अत्यंत ही दुर्लभ है। 

मानव के आदर्श चरित्र का यथार्थ वर्णन अगर कहीं जानना है तो श्रीमद्भागवत को अवश्य सुनें। संसार का संयोग अनित्य है और वियोग नित्य है संसार के जिन भौतिक वस्तुओं को हम महत्व देते हैं उन वस्तुओं का एक ही काम है कि वह परमात्मा से हमें दूर रखने का कार्य करती है। संसार स्वयं असत्य है और संसार से हमारा संबंध भी असत्य है। यह संसार मेहंदी के पत्ते की तरह ऊपर से तो हरा दिखता है पर यह परमात्मा की लाली से परिपूर्ण है।

सुख के लिए केवल निरंतर प्रयास ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उचित दिशा में प्रयास हो यह भी आवश्यक है। दुख भगवान के द्वारा दिया गया कोई भी दंड नहीं है, यह तो हमारे कर्मों का फल है जीवन में सुखी होने की चाहत तो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है पर उसके प्रयास सदैव विपरीत दिशा में होते हैं। यदि आप सच में सुखी होना चाहते हैं, तो फिर उन रास्तों का त्याग क्यों नहीं करते जिन रास्तों से दुख आता है। आपकी सुख की चाहत तो ठीक है पर रास्ता ठीक नहीं है।

मन में कोई बोझ मत रखिए, मस्त रहिए, अस्त व्यस्त नहीं रहिए । खुश रहिए। मुस्कुराते रहिए दूसरों से घृणा करने में अपना समय और ऊर्जा नष्ट ना करें। प्रेम एवं आनंद के लिए पहले ही बहुत कम समय है, जो समय एवं ऊर्जा हम किसी से घृणा निंदा में लगाते हैं, वह प्रेम में लगाइए जीवन स्वर्ग तुल्य हो जाएगा।

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