रानी दुर्गावती के शौर्य और पराक्रम की गाथाएं सदैव बेटियों को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देती रहेंगी: अभाविप | Rani Durgawati

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रानी दुर्गावती के शौर्य और पराक्रम की गाथाएं सदैव बेटियों को असंभव को संभव कर दिखाने का साहस देती रहेंगी: अभाविप | Rani Durgawati

विप्र संवाददाता गया


अखिल भारतीय विधार्थी परिषद के गया महानगर इकाई द्वारा रानी दुर्गावती जी के 500वीं जयन्ती के मौके पर गया शहर के मानपुर स्थित जगजीवन महाविद्यालय में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर अभाविप के गयाजी महानगर अध्यक्ष प्रियंका तिवारी ने कहा कि विश्व इतिहास में रानी दुर्गावती पहली महिला है जिसने समुचित युद्ध नीति बनाकर अपने विरूद्ध हो रहे अन्याय के विरोध में मुगल साम्राज्य के विरूद्ध शस्त्र उठाकर सेना का नेतृत्व किया और युद्ध क्षेत्र मे ही आत्म बलिदान दिया। रानी दुर्गावती सोलहवीं शताब्दि की वीरांगना थीं। उनके समय तक गौंड़ सेना पैदल व उसके सेनापति हाथियो पर होते थे। जबकि मुगल सेना घोड़ो पर सवार सैनिको की सेना थी। हाथी धीमी गति से चलते थे और घोड़े तेजी से भागते थे, इसलिये जो मुगल सैनिक घोड़ो पर रहते थे वे तेज गति से पीछा भी कर सकते थे और जब खुद की जान बचाने की जरूरत होती तो वो तेजी से भाग भी जाते। किंतु पैदल गौंडी सेना धीमी गति से चलती और जल्दी भाग भी नही पाती थी। विशाल, सुसंगठित, साधन सम्पन्न मुगल सेना जो घोड़ो पर थी उनसे जीतना संख्या में कम, गजारोही गौंड सेना के लिये कठिन था, फिर भी जिस तरह रानी दुर्गावती ने दुश्मन से वीरता पूर्वक लोहा लिया, वह नारी सशक्तीकरण का अप्रतिम उदाहरण है। तीन बार तो रानी ने मुगल सेना को मात दे दी थी। हम बेटियों को भी रानी दुर्गावती जी की वीर गाथा पढ कर अपने सौर्य को पहचानना चाहिए एवं अपनी शक्ति से एक नया मुकाम हासिल करनी चाहिए। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सत्येंद्र प्रजापति ने कहा कि बलिदान दिवस के रूप में रानी दुर्गावती की पुण्यतिथि मनाई जाती है। आज रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर देश उन्हें याद कर हम सभी श्रद्धांजलि दे रहे है। अपनी अंतिम सांस तक मुगलों को नाकों चने चबवाने वाली, अदम्य साहस और शौर्य की प्रतीक, स्वधर्म के लिए लड़ते हुए अपना बलिदान देने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती जी का जीवन सदैव आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। एबीवीपी की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य प्रिया सिंह ने बताया कि धर्म की रक्षा के लिए सर्वस्व अर्पित करने वाली महान वीरांगना, स्वाभिमान-पराक्रम व नारी शक्ति की प्रतीक रानी दुर्गावती जी को केवल मुगलों के खिलाफ वीरता के लिए ही नहीं, उनके जन कल्याणकारी कार्यों के लिए भी याद रखा जाएगा। अपनी वीरता के लिए जानी जाने वाली रानी दुर्गावती का युद्ध कौशल सराहनीय था। वहीं उनके शासन काल में मठ, मंदिर, कुएं, बाबड़ी, धर्मशाला सहित अनेक धार्मिक, सामाजिक संस्कारित कार्य हुए जो कि आज भी प्रेरणादायी हैं। रानी दुर्गावती जैसी वीरांगनायें आज की नारी का आदर्श होना चाहिए। उन्होंने बताया कि 5 अक्टूबर सन् 1524 को महोबा के राजा कीर्ति सिंह के घर जन्मीं उनकी एक मात्र संतान थीं। विवाह के चार वर्ष बाद पति की असमय मृत्यु होने पर तीन वर्षीय पुत्र वीर नारायण को सिंहासन पर बैठाकर संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया। उन्होंने कई बार दुष्ट आतताई मुगल शासकों से युद्ध कर संपूर्ण क्षेत्र की रक्षा की। यहां तक कि उन्होंने अकबर, आशिफ खान राजबहादुर आदि को दांतों चने चवबा दिए। हम भारतीय नारी एक ओर शील, विनय, सौंदर्य एवं भक्ति की प्रतिमूर्ति है वहीं दूसरी ओर त्याग, बलिदान, शौर्य और साहस की परिचायक है। प्रत्येक नारी में ऐसे गुण विद्यमान होते हैं। बस उन्हें खोजने की जरूरत होती है। सभी नारी शक्ति को संकल्प लेना होगा कि किसी भी परिस्थिति में हम अपना सर किसी के समक्ष नही झुकने देगे। इस मौके पर गया महानगर अध्यक्ष प्रियंका तिवारी, प्रदेश कार्यकारणी सदस्य प्रिया सिंह, प्राचार्य सत्येंद्र प्रजापति, दीनानाथ जी, पूर्णेन्दु जी, रश्मि मैम, राजीव रंजन,अविनाश पांडे, सनी सिंह, सौरभ सिंह, आयुष कुमार आदि मौजूद रहे।

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